भय बिनु होय ना प्रीति।
समुद्र की विनती करते हुए प्रभु श्री राम को लंबा समय व्यतीत हो चुका था. रावण के संहार के लिए समुद्र पार करना आवश्यक था पर समुद्र रास्ता देने को तैयार नहीं था. धीरे धीरे प्रभु राम का धैर्य समाप्त होने लगा. जब धैर्य सीमा पार कर गया तो प्रभु राम बोल उठे कि.. विनय ना मानत जलध जड़ गए तीन दिन बीति। बोले राम सकोप तब भय बिनु होय ना प्रीति।। कहते हुए प्रभु राम ने अपने तरकस से बाण निकाला और समुद्र को सुखाने हेतु उस बाण पर अग्निदेव का आह्वान किया. दो मिनट निकले, पाँच मिनट निकले, दस मिनट व्यतीत हो गए पर अग्निदेव प्रकट नहीं हुए. प्रभु राम का धैर्य पुनः जवाब देने लगा. वो अग्निदेव पर क्रोधित होने ही वाले थे कि अग्निदेव प्रकट हुए. प्रभु श्री राम : हे अग्निदेव! क्या कारण रहा, मेरे आह्वान करने के बाद भी आपको आने में इतना विलंब क्यों हुआ? अग्निदेव : क्षमा करें प्रभु! आज धनपति कुबेर की अध्यक्षता में समस्त देवताओं की मीटिंग थी. मैं उसी मीटिंग में सम्मिलित था. इस कारण ही विलंब से आ पाया. प्रभु राम : अग्निदेव! आपका कर्तव्य है कि आप मंत्र का आह्वान करने पर प्रकट होंगे. अग्निदेव : जी प्...