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कहानी पूरी फिल्मी है..

   कहानी पूरी फ़िल्मी है    और आंकड़े भी आ गए कि सारे विरोध और हल्ले~गुल्ले के बावजूद पद्मावत की कमाई बाजीराव~मस्तानी की कमाई से दोगुनी हो चुकी है. न वो इतिहास था, न ये इतिहास है. पिक्चर पर काल्पनिक होने का ठप्पा लग चुका है तो अब बुद्धिजीवियों को इसमें राजपूती आन~बान~शान के दर्शन होने लगे हैं. मजे की बात ये कि पहले का सारा विरोध हवाई था. जो लोग पिक्चर रिलीज होने तक मारने~काटने पर उतारू थे वो अब सहजीविता के सिद्धांत का पालन करते हुए पिक्चर के कलैक्शन के आंकड़ों की वृद्धि के लिए टिकट खिड़की पर लाइन लगाए खड़े हैं. अदम गौंडवी साहब अगर होते तो आज के हालात शायद इस तरह बयां करते.. तुम्हारे थियेटर में पिक्चर का मौसम हवा हवाई है मगर ये आंकड़े झूंठे हैं, ये दावा फितनाई है उधर फ्रीडम ऑफ़ स्पीच का ढोल पीटते हैं वो इधर असलियत में पब्लिसिटी है, कमाई है   दिमाग कतई डेविड धवन की फिल्मों के दर्शक सा हुआ जा रहा है. जो दिख रहा है वो सच नहीं है, जो सच है वो दिखता नहीं है पर फिर भी लगे हुए हैं. रोजाना की चकल्लस से दूर हट कर संस्कृति और सांस्कृतिक विभ्रंश जैसे बड़े शब्दों के बीच खड़े होने का मौका मिल