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Showing posts from May, 2021

मृत्यु संगीत

क्या यही जीवन संगीत है? जो बह रहा है चहुँ ओर, पक्षियों के कलरव में, गौधूलि की आहट में, दूर कहीं से आते मंदिर के घंटे के अनुनाद में, बाग में बैठे, प्रेमी युगल की खिलखिलाहट में, पेड़ पर बतियाती, चिड़िया की चहचहाहट में. एक बच्चा जो निश्छल हंसी हंस देता है, मानो स्वर लहरियां चहुँ ओर बिखेर देता है. तो फिर वो क्या है.. तो फिर वो क्या है? एक बेटा, जो हस्पताल के बाहर अपनी माँ के लिए प्राणवायु की विनती करता है. एक अभागा बाप, जो अपने बेटे का शव अपने कंधे पर लेकर पैदल ही निकल पड़ता है. वो घाट, जिनसे होकर कभी बहती थीं, कलरव करते पानी की स्वर लहरियां आज वहाँ शवों का मौन क्रंदन बहता है, ध्यान से सुनें तो उसमें भी सुर, लय और ताल का भाव छलकता है. विवशता के सुर, आंसुओं की लय सत्ता की उदासीन निर्लिप्तता की ताल क्या हम इसे मृत्यु संगीत कह सकते हैं? क्या हम इसे कह सकते हैं मृत्यु संगीत? जिसकी धुन पर नाचती हैं सत्ताएं, थिरकती हैं सरकारें, करोड़ों के होते हैं वारे न्यारे, उनके नाम पर जो हुए ईश्वर को प्यारे. जिसकी सरगम पर, पक्ष विपक्ष की महफिलें सजा करती हैं, इस रंगमहल के बाहर, जनता किसे दिखा करती है? किंतु.. पर

पैसा, औरत और आजादी

कहानी 1..   "तुमने एकाउंट से 10,000 रुपए किसलिए निकाले थे? कल मैं पासबुक में एंट्री करवा कर लाया तब देखा।" सविता के चेहरे पर कई भाव ज्वार-भाटे की तरह आए और चले गए। "वो मैं अपने लिए............ " "यार, कुछ खर्च किया करो तो बता तो दिया करो। गलती से भी तुम्हारे हाथ में कार्ड पहुँच जाए तो तुरंत ही तुम्हारे खर्चे शुरू हो जाते हैं।" "अब अपनी ही कमाई का पैसा खर्च करने के लिए भी हाथ पसारो।" सविता धीरे से फुसफुसाई। "ऐसा कर, ये रख अपना कार्ड और ये पासबुक, अब तू कमा रही है तो तुझमें इतनी समझ भी आ गई है कि मुझे समझा सके।" राकेश कार्ड और पासबुक सविता के मुँह पर फेंकता हुआ बोला। कहानी 2..   "तो में मैं इतने जूत बजांगो कि सबरी हेकड़ी भूर जाएगी।" कलुआ पैर में पहनी चप्पल को हाथ में तलवार की तरह घुमाते हुए बोला। "मार तू, और कर ही का सके है। पर तोए मैं पैसे नाय दूँगी। घर घर जा के मजूरी करूँ तब जा के जे दो पइसे हाथ में आवै हैं।" "तो मैं का चोरी डकैती से लाऊँ हूँ?" "ना करै है चोरी पर जो पइसा कमात है ऊ कौन सा घर खर्चे को देत