पैसा, औरत और आजादी
कहानी 1..
"तुमने एकाउंट से 10,000 रुपए किसलिए निकाले थे? कल मैं पासबुक में एंट्री करवा कर लाया तब देखा।"
सविता के चेहरे पर कई भाव ज्वार-भाटे की तरह आए और चले गए।
"वो मैं अपने लिए............ "
"यार, कुछ खर्च किया करो तो बता तो दिया करो। गलती से भी तुम्हारे हाथ में कार्ड पहुँच जाए तो तुरंत ही तुम्हारे खर्चे शुरू हो जाते हैं।"
"अब अपनी ही कमाई का पैसा खर्च करने के लिए भी हाथ पसारो।" सविता धीरे से फुसफुसाई।
"ऐसा कर, ये रख अपना कार्ड और ये पासबुक, अब तू कमा रही है तो तुझमें इतनी समझ भी आ गई है कि मुझे समझा सके।"
राकेश कार्ड और पासबुक सविता के मुँह पर फेंकता हुआ बोला।
कहानी 2..
"तो में मैं इतने जूत बजांगो कि सबरी हेकड़ी भूर जाएगी।"
कलुआ पैर में पहनी चप्पल को हाथ में तलवार की तरह घुमाते हुए बोला।
"मार तू, और कर ही का सके है। पर तोए मैं पैसे नाय दूँगी। घर घर जा के मजूरी करूँ तब जा के जे दो पइसे हाथ में आवै हैं।"
"तो मैं का चोरी डकैती से लाऊँ हूँ?"
"ना करै है चोरी पर जो पइसा कमात है ऊ कौन सा घर खर्चे को देत है। अपने पइसा की तो तू दारू पी जावे है।"
"अब तू बकर बकर ही करैगी के पईसे देगी?"
"ना दूँगी, जो करना है कर..........."
"तो लै फिर....."
कलुआ के हाथ में लगी चप्पल बार बार ऊपर नीचे उठने गिरने लगी। वहीं थोड़ी दूर पर ही खड़ा छः साल का छोटू अपने बाप को बड़े ही ध्यान से देख रहा था। शायद कुछ सीखने की कोशिश में था।
कहानी 3..
"वहाँ पर कोई गड़बड़ तो ना होगी अम्मा?"
"कोई गड़बड़ ना होगी बेटा, हस्पताल अपनी मुन्नी ताई की जानकारी वालों का है। वो भी अपनी बहू की जाँच वहीं करवा कर लाईं थीं।"
"पर माँजी! मैं कह रही थी कि जाँच की क्या जरूरत......."
"रे तू चुप कर, अम्मा के सामने जबान मत चला, वो सब जाने हैं कि का सही है और का गलत। ऊपर से तूने दो छोरी पहले से मेरी छाती पर चढ़ा रखी हैं।"
"पर मैं भी तो नौकरी कर रही हूँ, एक और लड़की भी हुई तो उसका खर्चा उठा ही.............."
"तू इसके मुँह न लग बेटा। तू बस गाड़ी का इंतजाम देख। छोरी भई तो उसे वहीं गिरवा कर उसी गाड़ी से वापस लौट आवेंगे।"
कहानी 4..
"आज रहने दो, आज थकान ज्यादा हो रही है।"
"देख रहा हूँ जब से तेरी नौकरी लगी है तेरी नाटकबाजियां ज्यादा ही बढ़ती जा रही है।"
"सुबह घर का सारा काम करके फिर सारा दिन ऑफिस के बाद फिर घर पर आकर सारा काम निपटाना, थकान नहीं होगी क्या?"
"सब समझ रहा हूँ, ऑफिस की थकान.......... ये गुप्ता की वजह से होती होगी?"
"तुम कहना क्या चाहते हो?"
"समझ तो तू भी रही है, इतनी भोली मत बन, मैं जो देख रहा हूँ वही कह रहा हूँ।"
"और क्या देख रहे हो?"
"रहने दे, क्यों मेरा मुँह खुलवा रही है।"
"फिर भी......"
"मेरे तुझे बस स्टॉप छोड़ते ही तू जो उस गुप्ता की गाड़ी में जाकर उससे चिपक जाती है, तू क्या सोचती है मुझे कुछ समझ नहीं आता।"
थकी हारी वंदना बादलों से झाँकती धूप छाँव की तरह अनगिनत आते जाते भावों को चेहरे पर लिए राकेश की तरफ घृणा मिश्रित दृष्टि से एकटक देखती रह गई।
*ज्ञात आंकड़ों के अनुसार भारत में घरेलू हिंसा की शिकार हुई कुल महिलाओं में हिंसा की शिकार कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत 60% के आसपास है।*
एक से बढ़ कर एक सच्ची कहानियाँ 👌👌
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Deleteकटु मगर सत्य..👏👏
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ReplyDeleteसरल शब्दों में कहा गया कटु सत्य।
ReplyDeleteबेहद मार्मिक सत्य घटनायें बताती हैं कि अब भी समाज में जो क्रांति दिखती है वो दरअसल एक मुखैटा ही है , पुरुष ये सहनदही नहीं कर पा रहा कि स्त्री भी उसकी तरह ही अधिकार रखती है...शेष चरित्र तो सबसे पहला हथियार है स्त्री को कुचलने (शारीरिक व मानसिक दोनों ही तौर पर) का और उसे वह बखूबी इस्तेमाल भी कर रहा है
ReplyDeleteबेहद मार्मिक सत्य घटनायें बताती हैं कि अब भी समाज में जो क्रांति दिखती है वो दरअसल एक मुखैटा ही है , पुरुष ये सहनदही नहीं कर पा रहा कि स्त्री भी उसकी तरह ही अधिकार रखती है...शेष चरित्र तो सबसे पहला हथियार है स्त्री को कुचलने (शारीरिक व मानसिक दोनों ही तौर पर) का और उसे वह बखूबी इस्तेमाल भी कर रहा है
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