सनातन और पटाखे

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।

  ये संस्कृत भाषा में लिखा गया एक श्लोक मात्र नहीं है बल्कि ये सनातन का मूल मंत्र है। हिंदू धर्म के हर अनुष्ठान, पूजा– पाठ में इस मंत्र का पाठ सदैव ही होता आया है। हिंदू धर्म में हम लोगों को बचपन से ही ये बात घुट्टी की तरह पिला दी जाती है कि इस श्लोक में सर्वे भवन्तु सुखिनः के सर्वे शब्द का तात्पर्य समस्त जीवधारियों के लिए है। वो जीवधारी पशु हो, कीट~पतंगा हो या पेड़ पौधा ही क्यों न हो। वो जीवधारी किसी जाति विशेष से हो या न हो, किसी धर्म विशेष से हो या न हो, हमारे साथ हो या हमसे अलग हो, हम जैसा हो या रंग~रूप में हमसे भिन्न ही हो, हमारे पास का हो या पृथ्वी के दूसरे छोर से ही क्यों न हो; इस श्लोक का पाठ सबके स्वास्थ्य की कामना से, सबके सुखी रहने की कामना से किया जाता है।

  मुझे याद है कि जब बचपन में मेरे लिए पटाखे लाए जाते थे तो पटाखों पर लिखी सुरक्षा चेतावनी के अतरिक्त एक बात मुझे घर पर भी समझाई जाती थी, कि पटाखे कम चलाने हैं। क्योंकि ये न सिर्फ पैसे की बर्बादी है बल्कि इससे वातावरण में जो अलग अलग प्रकार का प्रदूषण फैलता है, वो सभी के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। और ये करीब तीस पैंतीस साल पुरानी बात है। ये निर्देश बिना किसी सोशल मीडिया, माननीय काले कोटधारियों के दिशा निर्देश या ज्ञान के आता था। कई बच्चे इस बात को तब ही समझ जाते थे पर हमारे लिए बचपन की मस्ती इन सब निर्देशों पर भारी रहती थी।

  वस्तुतः पटाखों को लेकर ये सब समझाने के पीछे भाव इसी मूल मंत्र का रहता था, जिसमें प्रकृति और समस्त जीवधारियों को समभाव से देखकर उन्हें किसी भी प्रकार क्षति पहुंचाने की संभावना को न्यूनतम किया जाता है। ये भी सनद रहे कि इसके पीछे किसी प्रकार की सोशल मीडिया या किसी न्यायालय का आदेश नहीं, वरन हमारे अवचेतन मस्तिष्क में गहरे तक पैवस्त सनातन का यही मूल मंत्र है।

  हम एकमात्र सनातन सत्य के साथ विकास के विभिन्न सोपानों पर स्वयं की समीक्षा करने वाले जन हैं। विकास के किस चरण पर किस व्यसन~अभ्यास को अपने साथ रखना है, किसको अपने से विलग करना है, हमें आता है। समय के साथ अपने धर्म या समाज में आती कई कुरीतियों को हमने अपने से अलग भी किया है, और कई बातों को अपनाया भी है। ईश्वरीय सत्ता हमारी श्रद्धा है, पर सिर्फ वही एक हमारी श्रद्धा का केंद्र नहीं है। किसी अन्य धर्म की तरह हमारा धर्म ईश्वरीय सत्ता को न मानने भर से नष्ट नहीं हो जाता।

  प्रदूषण एक वास्तविक समस्या है। आधुनिक जीवन शैली का सह उत्पाद है। इस समस्या के समाधान में कुछ वस्तुओं का उपयोग करना या न करना, ये हमारे विवेक पर निर्भर है। क्योंकि हमारे धार्मिक क्रियाकलापों~उल्लास से जुड़ी वस्तुएं ही इस प्रदूषण की समस्या का सबसे बड़ा और अंतिम कारण नहीं है।

  समस्या तब उत्पन्न होती है जब हिन्दू धर्म का शतांश भी न समझने वाले लोग भी हम सनातनियों को ज्ञान देने चले आते हैं। ये सब लिखने का उद्देश्य इन लोगों को समझाना नहीं है, क्योंकि अगर इनमें सनातन के प्रति समझ ही होती तो ये इस तरह के एकतरफा अनर्गल प्रलाप नहीं करते। ध्यान रखें, धर्म की आधी अधूरी व्याख्या करने वाले किताबी लोग आपको, हमें कभी निर्देशित नहीं कर सकते।

  अतः पटाखे चलाने हों या न भी चलाने हों, जो भी निर्णय हो वो आपके पूर्ण विवेक के साथ बिना किसी के प्रभाव में आए हो। दीपावली हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम की अयोध्या वापसी का पर्व है, उल्लास का पर्व है, इसे पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाएं।


शुभ दीपावली!!🪔🪔 

Comments

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