Posts

Showing posts from April, 2019

हो ली

    हो ली   वक़्त का क्या कहें कि मसाबें फूट कर आकार ले चुकीं थीं. जिस्म के रासायनिक संतुलन के सूत्रों की खोज सरस सलिल, मनोहर कहानियां, गृहशोभा की व्यक्तिगत समस्याओं वाले कॉलम से आगे सविता भाभी की कहानियों से बढ़कर मुंह छिपा कर सिनेमाघरों में लगे मॉर्निंग शो और कभी कभी यूँ ही चलते चलते बदनाम गलियों की ओर नजर मारने तक पहुंच चुकी थी.   उम्र अपने उठान पर थी पर कहानी तब शुरू हुई जब उठी उम्र की सलमा बेगम अपने खाविंद और तीन बच्चों के साथ सामने वाले मकान में किराएदार बन कर आईं. आने के साथ ही वो मुहल्ले के सारे लौंडों की आंटी हो गईं थीं पर धीरे धीरे लौंडों को उन्होंने आंटी के बदले भाभी कहना सिखा दिया.   एकदम पास के पड़ोसी होने के नाते, उस पर लड़कपन पार कर चुके इश्क़ की तलाश में जवान होते लौंडे के नाते भी उनके यहां आना जाना लगा रहता था. कभी बच्चों को स्कूल से लाना, कभी घर के राशन के लिए लाइन में लगना, कभी रात~बेरात बिजली का कनेक्शन सही करने जाने के बदले मिलने वाली चाय~नमकीन के संग धीरे~धीरे बढ़ती बेतकल्लुफ़ी के साथ हर दूसरे दिन किसी न किसी के साथ होती मुहब्बत के किस्सों को सुनते सुनते उधर