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आपदा में बुद्ध होना

 उनका हृदय बहुत समय से चिंतित था। यूँ तो चिंतित होना उनके लिए कोई नई बात नहीं थी पर इस बार चिंता अत्यधिक उच्च स्तर तक पहुंच चुकी थी। इस चिंता की चिंता में उन्होंने महल की हर खिड़की दरवाजे को खोल बंद करके देखा। सब कुछ सही था। फिर हर गली चौबारे को नाप कर देखा। हर नदी नाले की थाह छानी। धरती से आसमान तक भी जाकर देखा, बीच में पड़ने वाली हर वस्तु को ठोकबजा कर भी देखा। चिंता के बढ़ते स्तर के फलस्वरूप उन्होंने राज्य की हर व्यवस्था को पलटने का आदेश दे दिया, पर उनके चिंतित मन की व्यथा फिर भी शांत न हुई।   अभी कुछ ही समय पूर्व उन्होंने लंबे समय से चली आ रही सत्ता को पदच्युत करके कुर्सी संभाली थी। कुर्सी पर आते ही मानो सारे देश~विदेश, उनके सभी नागरिक, सेना, मंत्रालय, उनके कर्मियों, नीतियों, व्यवस्था, पर्यावरण, वातावरण आदि इत्यादि की चिंता का भार भी उनके सर आ पड़ा।   "आप इतनी चिंता न करें महाराज", मंत्रालय कर्मियों ने उनके सर पर रखी चिंता की गठरी अपनी ओर सरकाते हुए कहा, "ये चिंता करने वाला काम हमारा है, इसे हमें ही करने दीजिए।"   "नहीं, मेरे रहते चिंता की गठरी की चिंता किसी और