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रंग बदलता भगवा..

रंग बदलता भगवा  "मितरोँ! मुझे सिर्फ पचास दिन चाहिए, उसके बाद आप मुझे जो सजा दोगे वो मंजूर होगी."      व्यक्तिगत तौर पर कांग्रेसी नेतृत्व की अक्षमता और शीर्ष स्तरीय भ्र्ष्टाचार की बंजर जमीन पर मोदी के ये बोल व्यवस्था पर लोगों का विश्वास का पौधा पुनः उपजाने को अमृत तुल्य वर्षा के समान रहे पर व्यक्ति के तौर पर मोदी का संवैधानिक पदों के प्रति लोगों के विश्वास की पुनर्स्थापना को आत्मसात करने में भाजपा बतौर पार्टी कहीं न कहीं पिछड़ती नजर आ रही है. बाकी कुछ कसर सोशल मीडिया के क्रांतिवीर अपनी हवाबाजी से पूरा करते ही रहते हैं जिनका जमीनी वास्तविकता से उतना ही सम्बन्ध है जितना कि मौसम विभाग का मौसम की जानकारी से लिये छोड़े गए गुब्बारे का अपनी समाप्ति तिथि के बाद अपने संपर्क केंद्र से रह जाता है.   नोटबन्दी के दौरान लंबी लाइनों में लगे रहकर भी सुनहरे भविष्य की ओर देखने वाली दृष्टि कब व्यापारिक सुगमता का दावा करने वाली आधी अधूरी व्यवस्था जी एस टी के मकड़जाल में उलझ कर बदल जाती है पता ही नहीं लगता. किसान कर्ज माफी से लेकर एन पी ए के राइट ऑफ होने के बीच मात्र एक अपील पर अपनी गैस