अथ श्री भगीरथ कथा


  'अथ श्री भगीरथ कथा'
    

  "माय लार्ड ! भगीरथ का पिछली कई पीढ़ियों से व्यवस्था भंग करके अपनी मनमानी चलाने का इतिहास रहा है."

 न्यायालय में चहुँ ओर बड़ी गहमागहमी थी. आज एक महत्वपूर्ण पीआईएल जिसमे गंगाजल की पृथ्वी पर लाए जाने वाली मात्रा का निर्धारण होना था, की सुनवाई का अंतिम दिन था. पीआईएल दाखिल करने वाले वकील चिंतकानंद अपने हाथों में टंगी कानून की लगभग मुर्दा हालात की पुस्तक जैसे ही नजर आ रहे थे, बस उनकी आँखों की चमक ही उन्हें मुर्दों से अलग किए हुए थी.

  "और अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिए मैं मिस्टर भगीरथ को अंतिम सुनवाई के लिए कटघरे में बुलाना चाहूँगा."

   "अनुमति है.."
  
  "तो मिस्टर भगीरथ, क्या ये सच है कि आपके परपरदादा राजा सगर पर एक निरीह घोड़े पर अत्याचार करने के कारण 'प्रीवेंशन ऑफ़ क्रुअलिटी टू एनिमल' के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था?"
  
  "पर वो तो हमारे परपरदादाश्री के अश्वमेघ यज्ञ का अश्व था और........."
  
  "मुकदमा तो था न भगीरथ जी ! फिर उनके बेटों पर घोड़े की तलाश के लिए पाताल तक की खुदाई करने के अपराध में 'फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट' और 'माइन एक्ट' के तहत एफ़.आई.आर. दर्ज हुई थी?"

  "वकील चिन्तकानंद जी! हमारे साठ हजार परदादाश्री उस अश्व की वजह से ही कपिल मुनि के श्राप के कारण मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं, कम से कम उनको तो बीच में न घसीटें."

  "वो आपकी व्यक्तिगत क्षति थी मिस्टर भगीरथ ! और उस वजह से ही तो आप गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर ला रहे हैं."

  "इसके लिए मैंने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया था, तब कहीं जाकर गंगा मैया उनके कमंडल से निकल कर पृथ्वी लोक पर अवतरित हो रही हैं."

  "भगीरथ जी ! आप ब्रह्मा जी का ऐसे गुणगान करके उन्हें व्यर्थ की प्रसिद्धि देने का प्रयास न करें. उन्होंने गंगा को अपने कमंडल में रखकर उस पर जो अपना एकाधिकार जमा रखा था, उस कारण उन पर कम्पटीशन कमीशन ऑफ़ भारत पहले ही 'कम्पटीशन एक्ट' के तहत कार्यवाही आरम्भ कर चुका है."

  "पर.........."

  "देखिये ! पर वर कुछ नहीं, आप और आपके पुरखे पहले से ही इतने सारे नियम~कानूनों का उल्लंघन कर चुके हैं कि गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने का काम आपकी इच्छा पर नहीं छोड़ा जा सकता, अतः मैं न्यायाधीश माननीय चतुर सुजान से विनती करूँगा कि निर्णय सुनाते समय प्रस्तुत तथ्यों को ध्यान में रखें."

न्यायाधीश चतुर सुजान: 
  "वकील चिंतकानंद जी के उठाये तथ्यों से न्यायालय पूरी तरह सहमत है और इस बात को समझती है कि गंगा की कहाँ~कहाँ और कितनी मात्रा पृथ्वी पर आए इसका निर्णय भगीरथ पर नहीं छोड़ा जा सकता. पर्यायवरण और पारिस्थितिकी संबंधी चिंताएं ध्यान में रखते हुए न्यायालय भगीरथ को निर्देश देती है कि वो न्यायालय की गणना के अनुसार प्रति व्यक्ति 500 ml गंगाजल ही पृथ्वी पर ला सकते हैं."

  दूर कहीं कैलाश पर्वत पर न्यायालय की कार्यवाही तन्मयता से देख रहे भोलेभंडारी ने न्यायालय का आदेश सुनते ही माथा पकड़ लिया और इस गणना में व्यस्त हो गए कि अगर न्यायालय की तरफ तीसरा नेत्र खोल दिया जाए तो उन्हें अवमानना का कितना दंड मिलेगा.

 बाकी जो हुआ वो इतिहास की पुस्तकों में अंकित है.

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