भूख!!

भूख..


  "मैंने इतनी ज्यादा और इतनी तरह की भूख देखी है कि वो मेरे 8~10 जन्म की भूख के बराबर है." ~ हर्ष मंदार, NDTV  प्राइम टाइम पर...

  भूख के भी अपने ही अर्थशास्त्र होते हैं. कोई सर्वे नहीं हुआ पर जितने पैसे भूख के सर्वे और थीसिस पर खर्च हुए हैं उसने भी कई NGO और थीसिस~मेकर की भूख मिटाने का काम किया है.

  ये बात भी गौर तलब है कि फिर भी इतनी भूख बाकी रह जाती है.

  थीसिस लिखने वाले भी गज़ब ही करते हैं. एक थीसिस~मेकर के हिसाब से हिंदुस्तान में एक जगह ऐसी है जहाँ लोग गाय~भैंस वगैरह के गोबर में से अन्न के दाने निकाल कर खाने के लिए इकठ्ठा करते हैं. बड़ा धैर्य चाहिए साहब! ऐसी जगह ढूंढने में जहाँ इंसान के लिए अन्न न उपजता हो पर जानवरों के गोबर में से अन्न के दाने निकल आएं. उस पर भी जहाँ जानवर गोबर करे वहां की दिन~रात की चौकीदारी कि कब कोई भूखा आए और उसकी भूख थीसिस में आए. मजे की बात ये कि थीसिस में आने के बाद वो भूखा कहीं खो सा जाता है; सही भी है कि अब उस भूखे आदमी में से भूख निकल कर थीसिस में आ गई तो वो किस काम का..?

 गाँव~गुरबों में दही में से मक्खन निकालने के बाद बची छाछ को बाँट दिया जाता है.

  "भूख दही है और भूखा छाछ.."

  कथा पुरानी है पर इसी भूख और गरीबी को दिखा कर लोग ऑस्कर तक ले उड़े.

  कुछ भूख थीसिस वालों के चंगुल से बच जाती हैं तो उसे नेता लोग लपक लेते हैं. वैसे ये बात भी 'मुर्गी और अंडे' की तरह शाश्वत प्रश्न है कि पहले भूख किसके चंगुल में आई ? नेताजी के या थीसिस वालों के..

  बड़ा ही मनोहारी दृश्य है. नेताजी हैलीकॉप्टर पर सवार हो कर भूख से मिलने जा रहे हैं. उनके लोग वहां पहुँचने से पहले ही भूख की झाड़~पोंछ शुरू कर देते हैं. भूख पर पैबंद लगने शुरू हो जाते हैं.

  "आप कब से भूखे हैं ?"

  नेताजी की प्रतिक्रिया भूखे के जवाब पर निर्भर नहीं करती. इस प्रतिक्रिया का एक फिक्स पैटर्न है. विपक्ष का नेता है तो उसकी प्रतिक्रिया भूख के पास खड़े होकर सरकार की नाकामी के ऊपर निकलती है. नेता अगर सत्तापक्ष का है तो उसकी प्रतिक्रिया प्रेस~कांफ्रेंस या किसी कॉनक्लेव में भूख के ऊपर आंकड़ो के रूप में निकलती है.
  भूख को लेकर दोनों पक्षों में एक अघोषित सा युद्ध रहता है. लोकतंत्र होने के नाते तलवारें तो निकल नहीं सकतीं इसलिए सिर्फ जबानी जमा~खर्च होता है.

  अगला दृश्य बड़ा ही चिरकुटई है. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में भयंकर किचकिच मची हुई, बड़ी ही जबरदस्त सर फुटव्वल हो रही है.
"ये भूख हमारी है."
"हम अपनी भूख किसी को नहीं देंगे."
भूखा हैरान है. उस पर बची इकलौती चीज़ 'भूख' भी उससे छिनने को है. वो रोता है और उसके आंसू निकल पड़ते हैं. नेता लोग सरल हृदय होते हैं, उनसे आंसू नहीं देखे जाते क्योंकि आंसू देखकर उनको अपने बचपन की भूख याद आ जाती है और उनका दिल पिघल जाता है. दोनों पक्षों में युद्ध विराम होता है. शांति समझौते के रूप में दोनों पक्ष पांच~पांच साल के लिए भूख को रखने को तैयार हो जाते हैं, भूख की देखभाल को एक NGO/आयोग केयर~टेकर नियुक्त कर दिया जाता है.

  दूर कहीं लाउड~स्पीकर पर गाना बज उठता है, "जहाँ डाल~डाल पर सोने की चिड़िया करतीं हैं बसेरा, वो भारत देश है मेरा.."

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