लौट के बुद्धू घर को आए
लौट के बुद्धू घर को आए... कहावत तो कुछ इसी तरह थी पर लोगों ने उनके बार~बार आने जाने को देखकर इसे 'लौट के बुद्धू फिर से घर को आए' बना दिया. कहने वालों का क्या है कुछ भी कह देते हैं, जैसे कुछ कहते हैं कि जब लौट कर वापस आना ही था तो गए ही क्यों? कुछ ये भी कहते हैं कि वो इतना जाते हैं कि उनका आना न आना एक बराबर है. कुछ 'और भी रंज हैं ज़माने में, एक तेरे आने~जाने के सिवा' टाइप के लोग ये सोच कर बात को रफा~दफा कर देते हैं कि, "छोड़ो भाई, बुद्धू ही तो है. इसके आने~जाने पर क्या नज़र रखना.." उनके बुद्धुपन में भी एक ख़ास किस्म की नफ़ासत है. आम आदमी अगर बुद्धू होता है तो वो बी ग्रेड शहर के किसी सी ग्रेड होटल में जा कर छिपता है पर उनका बुद्धुपन जहीन ठहरा, सो थाईलैंड वगैरह में जा कर ही दम लेता है. आमतौर पर जब आम बुद्धू घर लौट कर आता है तो बड़ा ही शर्मिंदा सा चुप~चुप सा रहता है और उम्मीद रहती है कि अब ये कुछ समझदारी दिखाएगा, पर उनके बुद्धुपन को जाने के बाद इतनी ऊर्जा न जाने कहाँ से मिलती है कि लौट कर आने के बाद और मुखर होकर सामने आता है. एक नज़र से देखा जाए तो ये सारी...