छोटा रिचार्ज

छोटा रिचार्ज..


"बाबूजी, दस रुपिया का वोडाफोन डाल तो दीजिये जरा."
दुकानदार ने एक उड़ती सी नज़र उस पर डाली. गठा हुआ तो नहीं पर सुतवां बदन, छोटी गोल कंचे सी आँखें, बाल बिखरे हुए, रंग धूप में काला हुआ होगा वर्ना कुछ गेंहुआ सा. दुकानदार की नजर उसके सारे जिस्म से होती हुई उसके पुष्ट उरोजों पर आकर टिक गई. उसने शायद इस नजर को भांप कर अपना पल्लू थोड़ा और नीचे सरका लिया.
"पचास रुपया लेगी."
दुकानदार लगभग लार टपकाने के अंदाज़ में बोला.
"कहाँ?" उसने दूर अपने डेरे की तरफ नजर डालते हुए कहा.
"इधर ही, अंदर."
"चल, पर पन्द्रह मिंट से जादा नहीं चलेगा."
"तू आ तो सही."
"रुपिया पहिले दे."
"ले ले बाबा."
दुकानदार ने अगल बगल मुस्तैदी से देखते हुए उसे अंदर ले कर दुकान का शटर आधा नीचे गिरा दिया.
लगभग बीस मिनट बाद शटर खुला. वो उखड़ी साँसों को समेटे हुए जाने को थी के अचानक फिर से दुकानदार की ओर पलटी.
"मेरा वोडाफोन तो डाल."
"पैसे पहले."
"बड़ा कमीना है रे तू, स्याला बनिया!!"

दोनों हंसने लगे..

Comments

Popular posts from this blog

सनातन और पटाखे

सब कुछ 'ख़ुफ़िया' है.

आपदा में बुद्ध होना