परछाइयाँ

परछाइयाँ



परछाइयाँ,
अक्सर पीछा करती हैं
पर उम्मीद रहती है फिर भी
कहीं न कहीं
किसी मोड़ पर
ये पीछा छोड़ेंगी...

ये होता भी है अक्सर
रात स्याह होती है जब
और कहीं दूर तक
कुछ भी दिखाई नहीं देता..

पर उजाले की तरह ही
ख़त्म होता है ये अँधेरा भी
सामने आते हैं जब भी उजाले
और
कुछ धुंधली सी तस्वीरें..

तब अहसास होता है
हम
कभी अकेले नहीं थे
ये परछाइयाँ
हमेशा ही साथ थीं....

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