"rt ले लो.... like ले लो..." "ओ rt वाले भैया! आज क्या भाव दे रहे हो ये rt और like?" कविवर वारदाना खरीदने के मनोभाव से बोले. "ले लो भइया, आपको तो सब पता ही है. आपसे का छिपा है." "चलो ठीक-ठीक लगा लेना. ऐसा करो ५ किलो rt और १५ किलो like तोल दो." कविवर अपनी नई रचना और हिंदी के विकास के समानुपातिक सूत्रों का हिसाब लगाते हुए बोले. प्रसिद्धि की संभावना की मंडी सज चुकी है. मीडिया की दुकानों से हिंदी के विकास के भूत आभासी आकाश में संभावनाओं के गुब्बारे पर बैठ कर ऊपर की ओर उड़े जा रहे हैं. प्रसिद्धि की संभावना की इस मंडी में बाजार के सीधे मूलभूत सिद्धांत 'जो दिखता है सो बिकता है' का भरपूर दोहन करते हर किस्म का माल दुकान पर सजा रखा है. इंस्टा, फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर आदि इत्यादि दुकानें भी ग्राहकों के इंतजार में सजी हुई हैं. "ये जो आपने लिखा है, ये क्या है?" "ये मेरी नई रचना है." "पर ये कैसी रचना है कि न इसमें कोई भाव, न ही सही शब्द विन्यास और इसका कोई अर्थ भी तो नहीं निकलता!" कवि की रचना के प्रासंगिक...